Home Politics आखिर क्यों पिछड़ता जा रहा है बिहार?

आखिर क्यों पिछड़ता जा रहा है बिहार?

by HE Times

राजेश सिन्हा. एचई टाईम्स . 07 जून 2021


भारत सरकार द्वारा गठित संस्थान, नीति आयोग ने सतत विकास के लक्ष्यों पर अपनी तीसरी रिपोर्ट 2020-21 हाल ही में जारी कर दी है. इस बार की रिपोर्ट में केरल फिर से एक बार टॉप स्थान पर अपनी जगह कायम रखी है, जबकि बिहार का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है.

अंकों के लिहाज से सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले केरल को 75 अंक हासिल हुए हैं, वहीं 74 अंकों के साथ हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु संयुक्त रूप से दूसरे स्थान पर हैं अगर सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों की बात करें तो 52 अंकों के साथ बिहार सबसे आखिरी पायदान पर है जबकि 56 अंकों के साथ झारखंड और 57 अंकों के साथ असम उसके ऊपर हैं.

बिहार के अतीत और वर्तमान में काफी बड़ा अंतर

प्राचीन काल से ही बिहार ने लोकतंत्र, शिक्षा, राजनीति, धर्म एवं ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में देश को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को मार्गदर्शन देने का काम किया है. लोकतंत्र के क्षेत्र में प्रसिद्ध लिच्छवी गणतंत्र और शिक्षा जगत में नालन्दा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के भग्नावशेष आज भी शिक्षा एवं ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अपने स्वरूप की कहानी बयां करते हैं वहीं राजनीति के क्षेत्र में अशोक, शेरशाह, चाणक्य, 1857 के सिपाही विद्रोह के हीरो बाबू कुंवर सिंह, डा. राजेन्द्र प्रसाद तथा बिहार केशरी श्रीकृष्ण सिंह आदि का अपना एक अनूठा इतिहास रहा है.

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी बिहार के पश्चिमी चम्पारण को अपनी कर्मभूमि बनाया था, अगर धार्मिक मूल्यों की बात करें तो भगवान महावीर तथा भगवान बुद्ध के ज्ञान की मशाल से देश ही नहीं, बल्कि पूरा विश्व रोशन हो रहा है.

क्या होता है एसडीजी

एसडीजी (SDG) का अर्थ होता है Sustainable Development Goals, इसके माध्यम से राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिति पर प्रदर्शन का आकल किया जाता है.  वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में उसके सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने विकास के 17 लक्ष्यों को आम सहमति से स्वीकार किया तथा वर्ष 2030 तक इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए इसके क्रिन्वयन की रूपरेखा सदस्य देशों के साथ साझा की गई,  विकास के लिए तय किए गए 17 लक्ष्यों में गरीबी निवारण, भूख को खत्म करना, स्वास्थ्य और लोगों का कल्याण, शिक्षा की गुणवत्ता, साफ पानी और सफाई तथा लिंग समानता जैसे लक्ष्य शामिल हैं.

एसडीजी के गठन का क्या है उद्देश्य

एसडीजी के गठन का मूल उद्देश्य सबकी भागीदारी एवं सर्वभौमिकता अर्थात कोई पीछे न छूट, संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व से गरीबी और भुखमरी को खत्म करने के लिए सबको आगे बढ़ने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है. इसके अन्तर्गत विकास को अपने सभी आयामों में सभी के लिए, हर जगह समावेशी होना चाहिए और उसका निर्माण हर किसी की, विशेषकर सबसे लाचार और हाशिए पर जीते लोगों की भागीदारी से होना चाहिए. सतत विकास लक्ष्यों के बारे में तालमेल का काम भारत सरकार के नीति आयोग को सौंपा गया है. नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्यों और उनके उद्देश्यों से जुड़ी योजनाओं की पहचान शुरू की है और हर उद्देश्य के लिए उसके अग्रणी एवं सहायक मत्रालयों की भी पहचान कर ली गई है.

कैसे तैयार की जाती है राज्यों की रैकिंग

संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के आधार पर नीति आयोग ने भारत की प्राथमिकताओं के अनुरूप अपना सूचकांक तैयार किया है तथा प्रत्येक वर्ष संयुक्त राष्ट्र के 232 सूचकांक की प्रणाली पर आधारित 100 निजी सूचकांकों पर राज्यों के प्रदर्शन की समीक्षा करता है.

बिहार लगातार दूसरी बार एसडीजी रैंकिंग में सबसे निचले पैदान पर

बिहार में विपक्ष इस बात पर हमलावार है कि, 15 साल तक लालू राज को जंगलराज बताने वाले भी अब 15 सालों से बिहार की गद्दी पर काबिज है. केन्द्र में भी भाजपा की सरकार है यानि डबल इंजन की सरकार, तो फिर क्यों पिछड़ रहा है हमारा बिहार? किसी के पास कोई जवाब नहीं है. अगर सच मानें तो यही डबल इंजन की सरकार बिहार के लिए अभिषाप बन गयी है. नीतीश कुमार पिछले 10 वर्षों से विपक्ष से ज्यादा अपने सहयोगी पार्टियों द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से हमलावार रहे हैं. सरकार की प्राथमिकता में विकास का एजेडा काफी धूमिल हाते गया. नौकरशाहों का बोलबाला रहा और नतीजा बिहार में विकास सिर्फ भाषणों एवं कागजों पर घूमता नजार आया.

बिहार के विकास में जातिगत राजनीति है सबसे बड़ी बाधा

बिहार के पिछड़ेपन के कारण की तह में जाकर देखेंगे तो आपको स्पष्ट रूप से यह बात समझ में आ जाएगी की बिहार के गौरवशाली अतीत को अगर किसी ने सबसे ज्यादा धूमिल किया है तो वह है यहां के लोगों में घोर जातिवाद की प्रवृति, सुसज्जित ड्राइंग रूम से लेकर नुक्कड़ के चाय की दुकान तक विकास से संबंध में ज्ञान देने वाले लोग भी चुनाव के समय प्रतिभाशाली और काबिल लोगों को नहीं अपनी जाति के लोगों की भागीदारी को ज्यादा तबज्जो देते हैं. शातिर अपराधी को भी जाति के नाम पर विधानसभा में चुनकर भेजना उनकी पहली प्राथमिकता होती है. नतीजन सभी राजनैतिक दल भी चुनाव के वक्त विकास के एजेंडे को कागजों एवं अपने घोषणा पत्र तक ही सीमित रखने में लगे रहते हैं, अब ऐस जनप्रतिनिधियों से विकास की अपेक्षा बेमानी ही होगी.

आजकल बिहार में करीब करीब सभी बड़े एवं पूराने नेताओं को अपनी अपनी जातियों में सीमित करने का प्रचलन चल पड़ा है, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर बिहार विधान सभा में जब व्यक्ति के बजाय परिवार को ईकाई बनाने की बात कर रहे थे, तब वे सिर्फ अतिपिछड़ों की बात नहीं कर रहे थे, बल्कि बिहार के कृषक वर्ग की बात कर रहे थे. उनका मूल उद्देश्य था कि बिहार के विकास की सबसे बड़ी बाधा को कैसे दूर किया जाए. आज यह एक विडंबना ही है कि उन्हें सिर्फ अतिपिछड़ों का नेता मान लिया गया है.

श्रीकृष्ण सिंह राजनीति में जिल मूल्यों को स्थापित कर रहे थे, उसकी चर्चा हो, तो प्रदेश का विकास होगा. उन्होंने सिद्धांत की राजनीति का एक मिसाल पेश करते हुए सबसे बड़े दल के नेता होने के बावजूद, बिहार के गवर्नर से आमंत्रण मिलने के बाद भी मंत्रिमंडल गठन करने से इंकार कर दिया था।

कुल मिलाकर एक बात तो साफ है कि बिहार में सिद्धांत, विचार एवं विकास की राजनीति दम तोड़ रही है एवं जाति, नफरत और स्वार्थ की राजनीति अपने पूरी यौवन पर है। ऐसे में अगर एसडीजी की रैंकिंग में  बिहार फिसड्डी है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए।

 

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