नव जाति अपनी गतिविधियों से हर पल पृथ्वी के पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा हैं। वर्तमान में पर्यावरण के समक्ष प्रमुख चुनौतियों का सामना किसी सरकार या समुदाय के द्वारा किया जाना संभव नहीं है। इसे एक सामुहिक जिम्मेदारी के रूप में लेना पड़ेगा।
पर्यावरण संरक्षण के समक्ष चुनौतियां पूरे विश्व में वितरित हैं। एक ओर जहॉं वनों की कटाई, वायु, जल, भूमि प्रदूषण, तेल की ड्रिलिंग जैसे मुद्दे पर्यावरण को खतरे में डाल रहे हैं वहीं दूसरी ओर जीवन को बनाये रखने के लिए आवश्यक संसाधनों को भी प्रभावित कर रहे हैं। वर्तमान के पर्यावरण की स्थिति और पर्यावरण के समक्ष प्रमुख कौन कौन सी चुनौतियां हैं इसपर गंभीरता से विचार करना आवश्यक है।
पर्यावरण के जानकारों एवं इससे संबंधित शोधों से यह बात स्पष्ट हो गयी है कि गहन कृषि निरंतर मछली पालन, वन्यजीवों का शिकार, बढती आबादी, वन विनाश, अम्ल वर्षा और जलवायु परिवर्तन सम्पूर्ण पृथ्वी के लिए खतरा एवं चुनौति बन गयी है।
हमारी पृथ्वी पर एक प्राकृतिक वातावरण हैं जिसको “पारिस्थितिकी तंत्र” कहा जाता हैं, इसके अन्तर्गत मनुष्य, पौधे, पहाड़, विशाल समुद्र, चट्टानें, ग्लेशियर शामिल हैं। इसी के अन्दर वे सभी संसाधन भी शामिल हैं जो कि मनुष्य की बुनियादी आश्यकताओं को पूरा करते हैं।
इंजीनियरिंग और विनिर्माण उद्योग में उपयोग की जाने वाली आधुनिक तकनीकों का पिछले कुछ वर्षों में हमारे जीवन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है। इसके कारण पर्यावरण में भी भारी बदलाव आया है। विनिर्माण उद्योग ने धातु, प्लास्टिक, तेल और रबर जैसी सामग्रियों के उपयोग में वृद्धि की है, इनका प्रयोग कार उत्पादन, शिपिंग उद्योगों, कपास की मिलों, प्लास्टिक उद्योगों, कोयला खनन, भारी मशीने बनाने आदि में किया जाता हैं। ये सभी पर्यावरण के प्रतिकूल हैं।
प्रदूषित पर्यावरण के लिए अब सिर्फ मृदा, जल तथा वायु ही प्रमुख कारण नहीं हैं बल्कि प्रदूषण अब यह काफी सूक्ष्म हो चूका हैं, कण कण में प्रदूषण व्याप्त हैं, और इनके लिए केवल और केवल मनुष्य ही जिम्मेदार हैं।
वर्तमान में “पर्यावरण संतुलन” की सबसे भयावह चुनौती जलवायु परिवर्तन हैं। केवल एक डीग्री तापमान का अंतर किसी प्रजाति को पूर्णतया नष्ट कर सकता हैं। पिछले कुछ दशको से तापमान में लगातार वृद्धि हो रही हैं। आज जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीनहाउस प्रभाव, मरुस्थलीकरण जैसी मुसीबतों को पैदा कर रहा हैं। इसके अलावा शहरी वातावरण का निरंतर गर्म रहना आदि समस्यांए उत्पन्न होना मानवीय क्रिया कलापों का परिणाम हैं।
ग्लोबल वार्मिंग एक वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दा है जो कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, जल वाष्प और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव के कारण होता हैं। ग्रीन हाउस गैसे सूर्य से आने वाली किरणों को वापस वायुमंडल से बाहर नहीं जाने देती हैं। जिस कारण से वह गर्मी सदैव के लिए पृथ्वी पर ही रह जाती हैं। जब कोइ क्षेत्र ज्यादा गर्म रहता हैं तो वहा पर वायुदाब बढ़ जाता हैं और वहां पर तूफान की संभावना बढ़ जाती है और, बिना मौसम के वर्षा होने की सम्भावना भी बन जाती हैं। आज यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय चिंता है।
बढ़ती जनसंख्या एवं आवास की पूर्ति के लिए निरंतर वनों को काटकर शहरों में बदला जा रहा हैं।पिछले कुछ दशकों में भोजन, आवास और कपड़े की मांग लगभग तीन गुना हो गई है। बढ़ती मांग को दूर करने के लिए, एक सीधी कार्रवाई होती है जिसे हम “वनों की कटाई” के रूप में जाना जाता हैं।
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, अनुमानित 18 मिलियन एकड़ जंगल हर साल नष्ट हो जाते हैं। वनों की कटाई के दीर्घकालिक प्रभाव गंभीर रूप से विनाशकारी और खतरनाक होगी क्योंकि वन विनाश से बाढ़, मिट्टी के कटाव, ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि, जलवायु असंतुलन, वन्यजीव की प्रजातियों का विलुप्त होने और अन्य गंभीर पर्यावरणीय मुद्दों का कारण बन सकते हैं।
जब कभी वनस्पतियों और जीवों से मिलकर बना एक प्राकृतिक वातावरण, प्रतिस्थापित होने के बजाय, अंधाधुंध तरीके से नष्ट हो जाता है, तो यह पर्यावरण के लिए बेहद भयानक संकेत हैं। लंबे समय में, यह मानव के अस्तित्व पर हानिकारक प्रभाव डाल सकता है और एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या का कारण बन सकता है।